जीएसटी के अंतर्गत कर वसूली, Recovery of Tax under GST in Hindi

जीएसटी के अंतर्गत कर वसूली: कर प्रशासन के समक्ष कभी-कभार ऐसी स्थिति आ जाती है जहां करदाताओं द्वारा अधिकांशत: असावधानीवश और कभी-कभी जानबूझकर देय कर का यथोचित भुगतान नहीं किया जाता है। अनजाने में करों के कम भुगतान को न्यूकनतम करने के उद्देश्य से जीएसटी अधिनियम में आपूर्तिकर्ता की ‘’बहिर्गामी आपूर्तियों’’ का मिलान प्राप्तिकर्ता की ‘’आभ्य्न्तरिक आपूर्तियों’’ से करने के प्रावधान किए गए हैं। इसके अतिरिक्ति, स्व-आकलित कर का भुगतान जीएसटी अधिनियम के अंतर्गत विहित नियत तिथि तक करना होता है और उसका भुगतान नियत तिथि तक न कर पाने की स्थिाति में ग्राहकों को इनपुट कर क्रेडिट उपलब्ध नहीं होता और करदाता भी अगली अवधि के लिए रिटर्न फाइल करने में सक्षम नहीं होगा। ये प्रावधान प्रभावोत्पादक रूप से स्वनीति निर्धारण प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं और करों के भुगतान में किसी तरह की असंगति का ख्याल रखते हैं। तथापि, इन प्रावधानों के बावजूद कुछ ऐसे उदाहरण सामने आ सकते हैं जहां यथोचित कर का भुगतान नहीं किया जाता है। इन सभी परिस्थितियों से निपटने के लिए किसी भी कर विधि में कर वसूली के प्रावधान निगमित किए जाते हैं। तदनुसार, जीएसटी अधिनियम में विभिन्नी परिस्थितियों के अंतर्गत करों की वसूली करने के व्यापक प्रावधान है, जिन्हें मूलत: निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

जीएसटी के अंतर्गत कर वसूली

  1. कम कर अदा करना अथवा त्रुटिपूर्ण ढंग से वापस किया गया कर अथवा गलत ढंग से इनुपट कर क्रेडिट प्राप्ता करना; और
  2. स्व-आकलित कर अथवा कर के रूप में संग्रहित राशि का भुगतान न करना।

2. कर के कम भुगतान अथवा त्रुटिपूर्ण कर प्रतिदाय अथवा गलत इनपुट कर क्रेडिट प्राप्त करने की घटनाएं अनजाने में हुई यथार्थ मूल (सामान्य मामले में) अथवा जानबूझकर कर चोरी का प्रयास (धोखाधड़ी के मामले) करने से घटित होती हैं। चूंकि दोनों प्रकार की घटनाओं में अपराध की प्रकृति पूर्णतया भिन्न है, इसलिए इस प्रकार के मामलों से निपटने के लिए कर एवं अर्थदंड की राशि की वसूली करने के लिए अलग-अलग प्रावधान किए गए हैं। इनके अतिरिक्तक, स्वैलच्छिक अनु पालन को प्रोत्साहित करने के प्रावधान भी हैं जैसे अगर विहित सीमा/कर अवधि के अंतर्गत ब्याज सहित देय कर की अदायगी कर दी जाती है तो शून्यी दंड अथवा कम अर्थदंड का प्रावधान है। अधोलिखित तालिका में स्वैच्छिक अनु पालन के प्रावधानों का एक स्पष्ट चार्ट दिया गया है:

कर दाता द्वारा कार्रवाई देय अर्थदंड की राशि सामान्य मामलों में देय अर्थदंड की राशि धोखाधड़ी के मामलों में अभ्युक्तियां
नोटिस जारी होने से पहले कर राशि का ब्याज सहित भुगतान कोई जुर्माना नहीं और कोई नोटिस जारी नहीं किया जाएगा कर राशि का 15 प्रतिशत जुर्माना और कोई नोटिस जारी नहीं किया जाएगा। जहां भुगतान करने की नियत तिथि से 30 दिनों के भीतर स्वत- आकलित कर अथवा कर के रूप में संग्रहित राशि
नोटिस जारी होने के 30 दिनों के भीतर कर राशि का ब्याज सहित भुगतान कोई जुर्माना नहीं। ऐसा माना जाएगा कि सभी कार्रवाइयां पूरी कर ली गई हैं कर राशि का 25 प्रतिशत जुर्माना ऐसा माना जाएगा कि सभी कार्रवाइयां पूरी कर ली गई हैं  
आदेश सम्प्रेषित होने के 30 दिनों के भीतर ब्याज सहित कर राशि का भुगतान करना कर राशि का 10 प्रतिशत अथवा 10,000/- रुपए, इनमें से जो भी अधिक हो कर राशि का 50 प्रतिशत। ऐसा माना जाएगा कि सभी कार्रवाई पू री कर ली गई ह का (ब्यागज सहित) भुगतान कर देने के मामलों में अर्थदंड की राशि भी प्रभार्य नहीं होगी
आदेश सम्प्रेषित होने के 30 दिनों के भीतर ब्याज सहित कर राशि का भुगतान कर राशि का 10 प्रतिशत अथवा 10,000/- रुपए इनमें से जो भी अधिक हो कर राशि का 100 प्रतिशत  

3. उपर्युक्त पैराग्राफों से यह देखा जा सकता है कि कम भुगतान अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिदाय अथवा अनुचित इनपुट कर क्रेडिट प्राप्त करने के सभी मामलों में उस व्यक्ति के लिए प्रोत्सा‍हनों का प्रावधान है जो कर देयता स्वीकार करता है और स्वेच्छा उनका निर्वहन करता है। विधि में नोटिस जारी करने से पहले कर, ब्याज और शून्य‍ अथवा नाममात्र जुर्माने (अपराध की प्रकृति के आधार पर) का भुगतान करने का अवसर देने का प्रावधान है और सुस्पष्ट( रूप से यह विनिर्धारित करता है कि ऐसे सभी मामलों में नोटिस जारी नहीं किया जाएगा और परिणामस्वरूप इनमें से किसी भी चूक का कोई अन्यस दृष्पिपरिणाम नहीं होगा। तथापि, प्रावधान यहीं पर समाप्त नहीं हो जाते हैं, और नोटिस जारी होने की 30 दिनों के भीतर कर और शून्य अथवा नाममात्र जुर्माने (अपराध की प्रकृति के आधार पर) का भुगतान करने का एक अन्य अवसर भी दिया जाता है और विधि में यह प्रावधान है कि ऐसा माल लिया जाता है कि उस नोटिस के संबंधित समस्त कार्रवाई पूरी हो चकी है। यदि कारण बताओ नोटिस जारी करना और तत्पश्चात आदेश जारी करना अनिवार्य हो जाता है तो जीएसटी अधिनियम में नोटिस और आदेश जारी करने की एक निश्चित समय-सीमा का प्रावधान करके इन सभी कार्रवाहियों को समय से पूरा करना सुनिश्चित किया गया है। यह समय-सीमा निम्नलिखित है:

मामले की प्रकृति नोटिस जारी करने की समय-सीमा आदेश जारी करने की समय-सीमा
सामान्य मामले में जिस वित्तीय वर्ष से संबंधित मांग है उसके लिए वार्षिक रिटर्न दायर करने की नियत तिथि अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिदाय की तिथि से 2 वर्ष 9 माह के भीतर जिस वित्तीय वर्ष से संबंधित मांग है उसके लिए वार्षिक रिटर्न दायर करने की नियत तिथि अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिदाय की तिथि से 3 वर्षों के भीतर
धोखाधड़ी के मामलों में जिस वित्तीेय वर्ष से संबंधित मांग है उसके लिए वार्षिक रिटर्न दायर करने की नियत तिथि अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिदाय की तिथि से 4 वर्ष 6 माह के भीतर जिस वित्तीय वर्ष से संबंधित मांग है उसके लिए वार्षिक रिटर्न दायर करने की नियत तिथि अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिदाय की तिथि से 5 वर्षों के भीतर
कर के रूप में संग्रहित परंतु जमा न की गई कोई धनराशि कोई समय-सीमा नही नोटिस जारी करने की तिथि से एक वर्ष के भीतर
स्व- आकलित कर का भुगतान न करने पर कारण बताओ नोटिस जारी करने की कोई आवश्यकता नही सीधे कर वसूली की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है

जीएसटी अधिनियम में इस बात का प्रावधान करके मामलों का समयोचित निपटान सुनिश्चित किया गया है कि यदि आदेश तीन वर्षों अथवा पांच वर्षों, जैसा भी मामला हो, की निर्धारित समय-सीमा के भीतर जारी नहीं किया जाता है तो ऐसा माना जाएगा कि न्यायनिर्णयन की कार्रवाई पूरी कर ली गई है। उपर्युक्ता सभी प्रावधानों से यह स्पष्ट, है कि स्-आक व्लित कर अथवा कर के रूप में संग्रहित राशि का भुगतान न करने को अन्ये छोटे-छोटे भुगतानों से अलग माना जाएगा और इन दोनों मामले में बिना जुर्माने के इनका भुगतान करने का केवल एक ही तरीका है और वह है भुगतान की नियत तिथि से 30 दिनों के भीतर इनका ब्याज सहित भुगतान कर दिया जाए।

4. इन सभी प्रावधानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि शू न्य अथवा नाममात्र जुर्माने सहित कर देयता का निर्वहन करने और उसमें संशोधन करने के पर्यापत अवसर हैं। तथापि, उस व्यक्ति के लिए कुछ अवप्रेरण भी हैं जो इन लाभकर प्रावधानों का उपयोग नहीं कर पाता है। इसके अतिरिक्ति, विधि में यह भी प्रावधान है कि किसी आदेश के खिलाफ अपील दायर न करने के लिए बोर्ड कुछ मौद्रिक सीमाएं भी निर्धारित कर सकता है। इसका आशय है कि यदि कर-निर्धारिती के पक्ष में कोई आदेश पारित किया जाता है तो यदि इसमें अंतर्ग्रस्त राशि विनिर्धारित सीमा से कम है तो विभाग अपील दायर करके इस मामले पर अन्यं कोई कार्रवाई नहीं करेगा। इस समय, मौजूदा विधि के अंतर्गत विभिन्न न्यायिक फोरमों में अपील दायर न करने की मौद्रिक सीमा निम्नलिखित है:

  1. न्यायाधिकरण – 10 लाख रुपए
  2. उच्च न्यायायलय – 15 लाख रुपए
  3. उच्चयतम न्या‍यालय – 25 लाख रुपए

5. किसी समुचित अधिकारी द्वारा न्यायनिर्णयन की यथोचित प्रक्रिया का अनु सरण करके देय के रूप में संपुष्ट कर अथवा धनराशि की उगाही करने के लिए उठाए गए अंतिम कदम वसूली की क्रियाविधि है। इसलिए, इन सभी लाभकर प्रावधानों के बावजूद यदि देय कर तथा अन्य राशि का भुगतान नहीं हो पाता है और करदाता आदेश पारित हो जाने और 3 महीने की सांविधिक सीमा पू री हो जाने के पश्चाात भी देयों की अदायगी नहीं कर पाता है तो सक्षम अधिकारी कर वसूली की कार्रवाई शुरू कर सकता है। सीजीएसटी अधिनियम, 2017 के अंतर्गत इन कर वसूली प्रावधानों में एक सुपरिभाषित प्रक्रिया निर्धारित की गई है जो निम्नलिखित है:

  1. इस मामले में पारित किसी आदेश के अनु सरण में देय किसी धनराशि के आदेश की प्राप्ति की तिथि से 3 माह के भीतर भुगतान करना अपेक्षित है और करदाता को उसका भुगतान निर्धारित समय-सीमा के भीतर कर देना चाहिए। तथापि, यह उल्लेखनीय है कि कतिपय मामलों में राजस्व के हित पर विचार करते हुए 3 महीने की इस अवधि को कम किया जा सकता है।
  2. यदि देय राशि का भुगतान 3 माह की विनिर्धारित समय-सीमा के भीतर नहीं किया जाता है तो कर वसूली की प्रक्रिया शरू कर दी जाएगी और सरकारी देयों की उगाही करने के लिए वसूली अधिकारी द्वारा विभिन्न प्रकार की कार्रवाई की जा सकती है। देयों की वसूली के लिए कार्रवाई के इन विकल्पों में ऐसे कर प्रदाता को देय किसी राशि में से धन की कटौती करना, किसी वस्तु् को निरुद्ध करना एवं उसकी बिक्री करना, किसी अन्य व्यक्ति को निदेश देकर जिससे उसको धन देय है, बकायेदार की संपत्ति को जब्त करना शामिल हैं।
  3. तथापि, व्यवसाय के विभिन्न‍ पहलुओं पर विचार करते हुए, स्व- आकलित कर के अलावा, ऐसी अन्य सभी राशियों का किस्तों में भुगतान करने का प्रावधान भी अधिनियम में किया गया है। कोई व्यक्ति, आयक्तु को एक आवेदन, जिसमें ऐसे अनुरोध के लिए कारणों का उल्लेख किया गया हो, देकर किस्तों में भुगतान करने का लाभ प्राप्त कर सकता है। आवेदन की प्राप्ति पर आयुक्त इस राशि का भुगतान किस्तों में करने की अनुमति दे सकता है। इसके लिए अधिकतम 24 मासिक किस्तेंं होंगी और लागू कर का भुगतान करना शामिल होगा। यहां यह नोट किया जा सकता है कि यदि किसी एक भी किस्त का भुगतान नहीं किया जाता है तो बकाया शेष समस्त राशि देय हो जाएगी और उसका तत्काल भुगतान करना होगा।

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