GST इम्पैक्ट: B2B इन्वॉइस में SGST और CGST हुआ शामिल, ऐसा बना GST बिल

GST इम्पैक्ट: B2B इन्वॉइस में SGST और CGST हुआ शामिल, ऐसा बना GST बिल: गुड्स और सर्विस टैक्स (जीएसटी) लागू हो चुका है। अब बिल में वैट और एक्साइज की जगह जीएसटी ने ले ली है। कारोबारियों को बी2बी बिल में एसजीएसटी और सीजीएसटी दोनों टैक्स बिल में दिखाने होंगे। जीएसटी में कारोबारियों के लिए बिल बनाने का  तरीका बदल गया है।

इन्वॉइस में एसजीएसटी और सीजीएसटी हुआ शामिल

जीएसटी के नए टैक्स रिजीम में एक ऐसे ही बी2बी बिल की कॉपी दिखा रहा है जिसे 1 जुलाई को काटा गया है। जीएसटी के बिल में कारोबारियों को स्टेट जीएसटी और सेंट्रल जीएसटी को अलग-अलग दिखाया जाएगा। बिल में जीएसटी की नई दरों के आधार पर टैक्स लगाया गया है। बाद में सेंट्रल और स्टेट जीएसटी का हिस्सा दिखाया गया है।

इन्वॉइस में दिखाया गया है GSTNनंबर

कारोबारियों को बिल में परचेजर और सप्लायर की डिटेल दी गई है। साथ ही टिन नबंर की जगह जीएसटीएन नंबर दिखाया गया है। परचेजर ने अपना पैन कार्ड नंबर भी बिल में दिखाया है।

GST इम्पैक्ट: B2B इन्वॉइस में SGST और CGST हुआ शामिल, ऐसा बना GST बिल

ट्रेडर्स स्वयं बनाएंगे बिल का फॉरमेट

सभी जीएसटी टैक्सपेयर्स यानी ट्रेडर्स और कारोबारी अपना इन्वॉइस फॉरमेट अपने मुताबिक बना सकते हैं। जीएसटी कानून के मुताबिक इन्वॉइस में कुछ फील्ड (सेक्शन) होना जरूरी है। अब बिल में वैट की जगह जीएसटी का विकल्प होना चाहिए।

200 रुपए का बिल बनाना नहीं होगा अनिवार्य

छोटे रिटेलर बड़ी संख्या में ट्रांजैक्शन करते हैं। उन्हें जीएसटी में 200 रुपए तक की ट्रांजैक्शन  के लिए बिल बनाने की जरूरत नहीं है लेकिन अगर कस्टमर बिल मांगता है, तब रिटेलर को बिल बनाना होगा। रिटेलर को हर एक ट्रांजैक्शन की डिटेल सरकार को देने की जरूरत नहीं होगी। उसे पूरे दिन के ट्रांजेक्शन का एक इन्वॉइस बनाना होगा, जो ट्रेडर सरकार को जमा कराएगा।

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ट्रांसपोर्टेशन के समय नहीं रखनी होगी बिल की कॉपी

सामान्य स्थिति में ट्रांसपोर्टर के लिए इन्वॉइस की कॉपी रखना अनिवार्य है। हालांकि, जीएसटीएन में ट्रेडर को इन्वॉइस रेफरेंस नंबर दिया जाएगा। अगर टैक्सपेयर ये रेफरेंस नंबर जनरेट करता है तो ट्रांसपोर्टेशन के समय इन्वॉइस बिल की कॉपी रखने की जरूरत नहीं होगी। इससे पेपर बिल खोने, गायब होने, फटने का खतरा नहीं होगा।

सरकार ने जीएसटी में कम किए कॉम्पलाएंस

  • जीएसटी में कॉम्पलाएंस कम करने के लिए सरकार ने 1.50 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले कारोबारियों के लिए इन्वॉइस पर गुड्स का एचएसएन कोड नहीं लिखना होगा।
  • बैंकिंग, इंश्योरेंस और पैसेंजर ट्रांसपोर्ट सेक्टर के लिए टैक्सपेयर्स के लिए कस्टमर का एडरेस और सीरियल नंबर इन्वाइस पर नहीं देना होगा।
  • अगर ट्रांसपोर्ट होने वाले गुड्स की क्वांटिटी रिमूवल के समय नहीं पता है, तो उसे गुड्स के डिलीवरी चलान से हटा सकते हैं। इसका इन्वॉइसडिलीवरी के बाद जारी किया जा सकता है।

नॉन टैक्सेबल सप्लाई के लिए जिस पर वैट इन्वॉइस बना हुआ है, उस पर अलग से बिल बनाने की जरूरत नहीं है

जीएसटी में इन्वॉइस नहीं कराने होंगे जमा

ट्रेडर्स को बी2सी के तहत अपने सभी इन्वॉइस अपलोड नहीं करने होंगे। उन्हें केवल कस्टमर इन्वॉइस की डिटेल देनी होगी। बी2बी के तहत ट्रेडर कोइन्वॉइस के डिटेल एक्सेल शीट में बनानी होगी और एक्सल शीट ही अपलोड करनी होगी।

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